गोरखपुर: ऐसे समय में जब शहरवासी एम्स के स्थापना के लिए सड़क पर उतर कर जद्दोजहद कर रहे हैं उनके लिए के लिए एक बहुत बड़ी खुशखबरी है। जल्द ही गोरखपुर को 500 बेड वाले बच्चों के हॉस्पिटल की सौगात मिलने वाली है।
एम्स की स्थापना के पूर्व ही यह चिकित्सालय बाल रोग में मील का पत्थर साबित होगा।
फाइनल रिपोर्ट से एक विशेष बातचीत में शहर विधायक डॉ राधा मोहन दास अग्रवाल ने बताया की केंद्र की भाजपा सरकार ने बीआरडी मेडिकल कालेज में ही प्रधामन्त्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के तहत 500 बेड वाले इंस्टिट्यूट ऑफ़ चाइल्ड हेल्थ की स्थापना के लिए बजट पास कर दिया है।
उनका कहना था की यह इंस्टीट्यट 14 मंजिल की होगी और मौजूदा समय में इसकी तीन मंजिल तैयार हो चुकी है।
79.64 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाला यह 500 बेड वाला अस्पताल आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण होगा। इसके बन जाने से बीआरडी मेडिकल कॉलेज पर रोजाना मरीजों के पड़ने वाले दबाब में भारी कमी आएगी।
गौरतलब है की पूर्वांचल में बीते कुछ वर्षों में इनसेफ़ेलाइटिस के कहर के कारण हज़ारों नौनिहाल अपनी जान गवां चुकें हैं। प्रशासनिक अंदेखियों के अलावा इस क्षेत्र में किसी बड़े चिकित्सा सेंटर के आभाव के कारण यह क्षेत्र बच्चों के लिए एक कब्रगाह बन चुका है। क्यूंकि इस गम्भीर बीमारी से मरने वालों में ज़्यादातर बच्चे ही होते हैं। जुलाई से दिसंबर तक का वक्त इस क्षेत्र के लिए एक श्राप बन जाता है। जापानी इनसेफ़ेलाइटिस (जेई) या दिमागी बुखार पिछले 35 साल में 15,000 से ज्यादा मासूमों की जान ले चुका है।
गोरखपुर का बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज हर साल, गोरखपुर के नज़दीक ही नहीं बल्कि बिहार और नेपाल से आने वाले मरीजों से बुरी तरह भर जाता है. अक्सर 208 बिस्तरों वाले इनसेफ़ेलाइटिस वॉर्ड में एक बेड को तीन से चार बच्चे शेयर करते हैं।
गोरखपुर, आजमगढ़, बस्ती और देवीपाटन को मिला दिया जाये तो इनके अंतर्गत 14 जिले आते हैं और अगर इनमे बिहार के 5 जिलों को जोड़ दिया जाये तो संख्या 19 तक पहुँच जाती है। इन 19 जिलों के जनसँख्या लगभग 6.25 करोड़ हो जाती है। इन 6.25 करोड़ लोगों में 1 करोड़ से ज्यादा 0-6 उम्र वालों बच्चों की संख्या है और इन्ही बच्चों को इनसेफ़ेलाइटिस का डर सब से ज्यादा है।
इस छेत्र में बुनियादी सुविधाओं के आभाव के कारण न केवल इनसेफ़ेलाइटिस बल्कि पानी से होने वाली बीमारियां, कैंसर और हार्ट सम्बन्धी परेशानियां भी लोगो को होती रहती है और इन सब बिमारियों के इलाज के लिए मात्र एक संस्थान है और वह है बी आर डी मेडिकल कॉलेज। और इस मेडिकल कॉलेज की हालत क्या है यह किसी से भी छिपी नहीं है।
मरीजों का बढ़ता प्रेशर, बुनियादी सुविधाओं का आभाव, स्थानीय राजनीति का दखल और आये दिन होने वाले हड़ताल के नाते इस पुरे पूर्वांचल के लाइफ लाइन कहे जाने वाले मेडिकल कॉलेज की व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गयी है।
हम बस अब यह कामना करते है की मेडिकल कॉलेज में बनने वाला यह चिकित्सालय जल्द तैयार हो जाये।

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